गुरुवार, 31 मई 2012

  रेत का घर

बड़े प्रयत्न से रेत का घर
बना रही थी
वह नन्ही सी लड़की
एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक
पहुँच गए थे उसके नन्हे हाथ
तभी एक लहर
तोडती हुई चली गयी
उसके घर को
सब कुछ विनष्ट
एक ही पल में |
घर टूटने की उदासी स्पष्ट थी
उसके चेहरे पर
पर पुनः उसके हाथ
गढ़ने लगे
नए घर को
बीच-बीच में
समुद्र को देखती नजरें
मानो चुनौती देती कि
बाधाएँ आती रहेंगी
प्रयत्न चलता रहेगा |

शनिवार, 5 मई 2012

 शेष भाग ...........यशोधरा का वियोग ........

              दुःख तो बहुत  यशोधरा को और इस बात का  और अधिक था कि क्यों उसे सोते  हुए छोड़ उसके स्वामी चले गए ? एक  बार  जगा तो दिया होता , वो भी उन्हें  जी भर के देख कर तृप्त हो लेती , लेकिन सिद्धार्थ क्या जाने नारी मन की व्यथा , समर्पण और आत्मशक्ति । वो भी नारी के उस कमजोर पक्ष की ओर ही देखे, जहाँ वो ममता और करुणा   की  मूर्ति बन बिछोह बर्दाश्त नहीं कर पायेगी । उन्हें लगा यशोधरा उन्हें मनुहार कर  रोक लेगी, बाधक बन जाएगी उनके मार्ग का , फिर उनका उदेश्य कैसे पूर्ण होगा, यही था शायद उनके मन में ,   परन्तु ऐसा नहीं था । यशोधरा अपने पति के वैराग्य मन को पहले सा जानती थी । यदि उसे रोकना होता तो  वो पहले ही प्रयत्न नहीं करती ? पुत्र जन्म तक सिद्धार्थ भी उनके साथ थे, तो क्या वो पति की बातों से उनके ह्रदय का भाव नहीं जानती थी ? अवश्य जानती  थी और उसे कोई मलाल नहीं था , बस दुःख इस बात का था कि स्वामी का दर्शन वह उस पवित्र बेला में न कर  सकी जिस समय उनका महाभिनिष्क्रमण हो रहा था ।
                       यदि हम यशोधरा को कमजोर नारी मानेगे तो  वो गलत होगा क्योंकि वर्षों  लगे सिद्धार्थ को बुद्ध बनने  में और तब तक वो , सामाजिक  मानसिक प्रताड़ना को सहती  रही । वो कमजोर होती तो कब का अपने प्राण त्याग दी होती । इतिहास यही कहता कि  बुद्ध के गृह त्याग के पश्चात उनकी पत्नी यशोधरा इस विरह वेदना को सहन नहीं कर सकी और प्राण ही त्याग दिए , लेकिन नहीं वो जीवित रही और अपने पुत्र की अच्छी परवरिश की । उन्हें तो इंतजार था अपने पति के बुद्धत्त्व की प्राप्ति का । वह उस सुख का आनंद लेना चाहती थी जिसे सिद्दार्थ पाने के लिए व्याकुल थे और गृहत्याग किया । महाभिनिष्क्रमण को फलीभूत होते देखना चाहती थी वो ।
            बुद्ध  बनने  के बाद पूरी दुनिया उन्हें भगवान्  के रूप में पूजने लगी लेकिन यशोधरा फिर भी अकेली रह गयी उसके त्याग को किसी ने नहीं समझा । उसकी महत्ता को गौण क्यों कर दिया गया ?







बुधवार, 2 मई 2012

सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण एवं यशोधरा का वियोग

सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण एवं यशोधरा का वियोग 

यशोधरा भारतीय इतिहास की वह नारी है जिसके आँसू बहे तो लेकिन व्यर्थ नहीं गए । न तो किसी ने  इन आंसुओं  पोछा  और न ही उसे संजो कर ही रखा । आज भी बुद्ध के अवशेषों के लिए हम खाक छान  रहें हैं  और उसे संजो कर रखने की होड़ लगी है । देश विदेश सभी बुद्ध के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हैं । एक से एक मठ बनाये जा रहे हैं , लेकिन क्या किसी ने ये सोंचा कि बुद्ध को महान बनाने में यशोधरा का क्या योगदान था? क्या वो तड़पी   नहीं होगी जब युवावस्था में ही उनके पति उन्हें  छोड़ वैराग्य की ओर प्रस्थान कर गए ? कौन पत्नी होगी जो अपने पति से दूर रहना चाहेगी ? वो भी तब जब वो पहली बार माँ बनी हो । अपने संतान को उसके पिता के गोद में वो नहीं देखना चाहेगी ? एक नारी के ह्रदय पर क्या बीतती होगी ये तो वही जानती है।

          समाज भी वही  और लोग भी वही , बस काल  विशेष का फर्क । ताने तो यशोधरा को भी सुनने पड़े होंगे । जब तक सिद्धार्थ भगवन बुद्ध नहीं बने तब तक तो यशोधरा ही दोषी मानी जाती  होगी और लोग कहते होंगे कि इसमें अपने पति  को मोहित करने की क्षमता ही नहीं है या फिर सिद्धार्थ उसे पसंद ही न करते हों। जितनी मुंह  बातें होती होंगी और बेबस हो उसे सब सहन करना पड़ता होगा । अपने ही लोगों के बीच  बेगानी हो गयी होगी वो, पर उसमे इतनी हिम्मत तो  जरुर  थी कि वो वर्षों तक सब कुछ सहन कर पायी । आखिर  किसको उलाहना देती वो? खुद को या अपने पति को ? जो पति संसार के कल्याण के लिए उसे  सोयी अवस्था में छोड़ कर चला गया उसे दोष देकर क्या वो समाज के लिए अच्छा करती ?

एक विचारणीय प्रश्न .........................शेष अगली बार